इकट्ठा हो रही हैं मन में बीते साल की बातें
ज़रा मीठी, ज़रा तीखी वो बीते साल की यादें
हुआ करती थीं कुछ मेरी भी सहेलियाँ
मशहूर थीं हमारी हर छोटी-बड़ी अठखेलियाँ
करते सुबह से दोपहर हम हज़ारों गुफ़्तगू
फिर भी न जाने क्यों रह गईं
अंदर अनेक पहेलियाँ
इकट्ठा हो रही हैं मन में बीते साल की बातें
ज़रा मीठी, ज़रा तीखी वो बीते साल की यादें
होते थे कभी कुछ हम खफ़ा
हो जाते नाराज़ वो भी कभी
रूठना-मनाना मगर
न कम हुआ न रुका कभी
पर उस दफ़ा वो रूठना, कुछ इस कदर ही हो गया
मनाया गया न उस दफ़ा, न फिर कभी, न आज भी
इकट्ठा हो रही हैं मन में बीते साल की बातें
ज़रा मीठी, ज़रा तीखी वो बीते साल की यादें
वो सफ़र मुश्किल रहा पर बन गया अब याद है
माना वो पल अब बीत गए, तजुर्बा मगर वो साथ है
कुछ नफ़रतें कुछ मोहब्बतें, सब उस में ही शुमार हैं
यह ख़ास हैं, हाँ ख़ास हैं, यादें जो आस पास हैं
इकट्ठा हो रही हैं मन में बीते साल की बातें
ज़रा मीठी, ज़रा तीखी वो बीते साल की यादें