Sunday, October 20, 2019

एक सफर

रुक से गए हो क्यों
वजह थी क्या जिसने रोका
अभी तक ढूंढ रहे हो क्यों
बना लो खुद ही एक मौका

अज़ीज़ बोलें मिलेंगे कल
तो उनकी राह नहीं तकना
करना ना वक्त तुम ज़ाया
खुद उनकी ओर तुम बढ़ना



बढ़ें गर वो भी तुम्हारी ओर
तो फासले जल्द कम होंगे
मिलोगे जल्द तुम दोनों
वो तुम्हारे रू-ब-रू होंगे

थको गर तेज़ चलने से
तो धीरे-धीरे तुम चलना
धीरे चलने से नहीं मुसाफ़िर
तुम रुकने से मगर डरना

चल पड़ोगे जब सफ़र पर
तो धूप, धूल-मिट्टी भी सताएँगी
पर तुम्हें नहलाने के लिए
फ़िर बारिशें भी आएँगी

मिल लोगे तुम अज़ीज़ से
एक वक्त ऐसा वो आएगा
तुम्हारे मिलन की दास्ताँ से
माज़ी में पन्ना एक जुड़ जाएगा

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